Friday, February 27, 2015

मन की बात ,इक पुण्यात्मा के इतिहास के साथ

ये मेरे दिल की आवाज़ है भाईसाब ।सब तक पहुँचाने का प्रयास है। आप भी सुन रहे हो ना ? क्यों, सुन रहे हो के नहीं  ?    


रीतियाँ दहल उठीं रूढ़िवादियों ने भृकुटि तानी थी
चिकित्सा विज्ञान परिभाषाएँ जिसे बदलानी थी
बृज के हर मुँह से जो हमने सुनी कहानी थी
सुनो दास्ताँ उसकी जो हस्ती जानी-मानी थी

एक बार बंसल क्लासेज़ कोटा के संस्थापक श्री वी.के.बंसल को एक दुर्लभ व्यक्ति की खबर मिली । उनको एक ऐसे अध्यापक का नाम बताया गया जो अकेला ही XII विज्ञान तक के सभी विषय पढ़ाकर साल दर साल मेरिट लिस्ट में वर्चस्व जमाए हुए था। कोटा क्षेत्र में कोचिंग क्रांति का प्रथम अन्वेषक स्वयं उस शख्स से संपर्क कर बैठा । ज़रा सोचिये अगर उनको मेरे नानाजी आदरणीय बल्लभ भाईसाब के संपूर्ण व्यक्तित्व की जानकारी अगर होती तो क्या कोई विद्दुत तरंग के आवेग से कम झटका लगता ?

जजमान! आप शायद जानते होंगे की प्रिय भाईसाब तो विज्ञान क्या वाणिज्य से लेकर कला भी इस सरलता से अपने शागिर्दों के मन मष्तिष्क में बैठा देते थे कि वो कक्षा और खेल के मैदान को एक ही समझने लगे थे।या यूँ कहूँ कि हमारे स्टीफन हॉकिंग का वो अनकहा गुरुकुल तो अनजाने में ही अपने मननकर्ताओं का संपूर्ण व्यक्तित्व विकास भी निशुल्क ही करता था । दोस्तों! सच बोलूं तो भाईसाब के यहाँ अध्ययन से लेकर कार्यान्वयन, क्रंदन से लेकर आंदोलन, चिंतन से लेकर अभिव्यंजन, या यूं कहूँ कि चार दीवारों के बीच ही पुरे संसार का भ्रमण ही हो जाता थ। पुरानी मण्डी के उस कल्पनालोक का पूर्ण विवरण और अल्फ़ाज़ों में सीमित करके मैं उसके अनुयायिओं के ह्रदय में चोट नहीं करना चाहता । 

भाईसाब के बारे में  जानने का जिनका पहला मौका है उनको मैं बता दूँ  कि भाईसाब का स्वयं का जीवन तो एक मूक तख़्त तक ही सीमित था । जी हाँ , हिण्डौन का ये  क्रन्तिकारी शिक्षाविद चल नहीं सकता था । तालीम लेने एक समय जोधपुर निकला हिण्डौन का एक मेधावी छात्र बल्लभ राम गुप्ता एक साइकिल दुर्घटना मैं निशक्त हो बैठा । कुछ ही क्षण में प्रकृति ने उसका जीवन ही बदल दिया। तो वे औरों का जीवन बदलने चल पढ़ा। पल पल डॉक्टरों के कथनों को निरर्थक साबित करते इस मानव ने ज़िन्दगी को इस ज़िंदादिली से जीना शुरू किया कि पलक झपकते ही साधारण सा हिण्डौन क़स्बा शिक्षा के गढ़ में और बी.आर.गुप्ता  बल्लभ भाईसाब में तब्दील हुए। उसके बाद तो भाईसाब ने इतिहास पे इतिहास रचे जो कि राष्ट्रपति पुरस्कार से लेकर निशक्तों में एक दुर्लभ जीवन, जन आंदोलन से लेकर जागरूकता मिशन तक सीमित नहीं थे। साथ ही साथ में हिण्डौन में इंजीनियर, डॉक्टर और प्रशासनिक अधिकारी बनाने का तो एक कारखाना सा ही डाल दिया । पर दोस्तों! अपने ओजस्वी व्यक्तित्व से भाईसाब ने कितने इंसान बना दिए क्या इसको हम कभी गिन पाएंगे ? जैन दर्शन में एक बात कही गयी है कि मानव बनके जन्म लेना कोई जीत नहीं किन्तु मानवता हासिल करना एक विजय है । तो जिस प्रकार भाईसाब ने इतने इंसानों को बनाया क्या वे एक बाज़ीगर नहीं हुए ? आप ही बताईये मित्रों हुए के नहीं ?

अपने निजी जीवन में भी भाईसाब इतने ज़िंदादिल थे की सबकी आँखों का तारा ही रहे । बल्कि उनके आभामण्डल का प्रकाश ऐसा तीव्र था कि उनके पेशेवर संपर्क, विद्यार्ति और रिश्तेदार सब एक होकर बल्लभ-भाईसाब-परिवार का ही हिस्सा बन गए । बल्कि भाईसाब का प्यार ऐसा असीमित रहा की बच्चे से लेकर बूढ़े , नर से लेकर नारी, भाजपा से लेकर कोंग्रेस और हिन्दू से लेकर मुसलमान इस सामंजस्य से जुड़े की सीमाएँ और विभाजन अपना अस्तित्व ही खो बैठे । और ऐसे क्रांति को छेड़ रहे हमारे भाईसाब को शायद कभी एहसास ही ना हुआ कि वो आम मानव से अलग होकर एक उच्च पायदान पर पहुँच चुके थे । तभी तो वे एक साधारण व्यक्ति , अपने प्रिय मित्रों एवं विद्यार्थियों को समान शालीनता से मिलते थे । एक आदर्श इंसान को परिभाषित करते महापण्डित Rudyard Kipling ने लिखा है :
                If you can talk with crowds and keep your virtue,
                Or walk with Kings - nor loose the common touch,
                If neither foes nor loving friends can hurt you,
                If all men count with you, but none too much;
उन्होंने शायद इन पँक्तियों समेत किपलिंग की पूरी कविता को कागज़ से उठकर यथार्थ में ही बदल दिया था ।

इस विशिष्ट मनुष्य को यह दिव्य ऊर्जा आखिर मिली कहाँ से ?शायद स्वयँ काल से समय समय लड़कर । हर एक अवधि के बाद भाईसाब को एक जानलेवा रोग घेर लेता था और वो हँसते हँसते उस लड़ाई से जीत जाते थे । और साथ में आदर्श भारतीय नारी विद्या की देवी मेरी अम्मा अपना सब कुछ त्याग जीवन भर जिस प्रकार उनके साथ रहीं शायद काल ही विवश सा होने लगा था। तभी इस मर्तबा उसने एक अलग ज़रिया अपनाया । समय समय कई व्याधि देने के बजाय उसने इस बार भाईसाब को एक समय में ही कई रोगों से ग्रस्त किया । शायद वो लड़ाई ज़ल्द ही जीत जाता लेकिन ईश्वर ने अपने दूत श्री ड़ॉ राधेश्याम गुप्ता को तलब कर अलग खेल खेला । ज्ञान, स्नेह और हट का वे ऐसा मेल साबित हुए कि सच में समझ आया की भारत में डॉक्टर को भगवान क्यों कहा जाता है । पल पल की जीवन मरण के बीच की इस लड़ाई में एक आदर्श पुत्री और डॉक्टर का ऐसा साथ मिला की काल फिर पराजय स्वीकार करने वाला था । पर हम सब जानते हैं कि मानव जीवन के चक्र का आखिरी पड़ाव क्या है । हुआ वही जो विधि का विधान था  --

मिला तेज से तेज  इस तेज के वो सच्चे अधिकारी थे  । 

ॐ शांति | 




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